Friday - 26 September 2025 - 5:21 PM

फिल्म रिव्यू: ‘होमबाउंड’ – दर्द, दोस्ती और समाज का कड़वा आईना

जुबिली न्यूज डेस्क 

नीरज घायवान की ‘होमबाउंड’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि 2020 के लॉकडाउन के दर्द और सामाजिक हकीकत का मार्मिक चित्रण है. यह फिल्म आपके साथ लंबे समय तक चलती है और उन सवालों को उठाती है जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं.

कहानी

फिल्म उत्तर भारत के एक गांव से शुरू होती है. शोएब (ईशान खट्टर) और चंदन (विशाल जेठवा) दो ऐसे दोस्त हैं, जिनके सपने, संघर्ष और पहचान का बोझ कहानी का केंद्र बनते हैं. शोएब अपने अब्बा की सर्जरी के लिए नौकरी चाहता है, जबकि चंदन का सपना अपनी मां के लिए पक्का घर बनाने का है.लेकिन जाति और धर्म की बेड़ियां उनकी राह में बार-बार रोड़ा बनकर खड़ी होती हैं.

एक्टिंग

  • विशाल जेठवा (चंदन) – खामोशियों में गुस्सा और आंखों में दर्द, उनका अभिनय आपको भीतर तक हिला देता है.

  • ईशान खट्टर (शोएब) – ईमानदारी और रॉनेस के साथ निभाया किरदार, उनका गुस्सा और दोस्त को खोने का दुख लंबे समय तक याद रहता है.
    दोनों की केमिस्ट्री फिल्म की जान है, जो दोस्ती को बेहद असली और भावनात्मक बनाती है.

निर्देशन

नीरज घायवान का निर्देशन बेहद संवेदनशील है. कैमरा समाज की हकीकत को रोमांटिक नहीं करता, बल्कि उसकी सच्चाई दिखाता है. जातिगत भेदभाव, धार्मिक पूर्वाग्रह और सरकारी बेरुखी को बड़े ही तीखे लेकिन यथार्थवादी अंदाज में पेश किया गया है.

खास सीन

  • चंदन की मां को स्कूल की नौकरी से निकालने वाला सीन आपको भीतर तक तोड़ देता है.

  • चंदन का फॉर्म भरते वक्त ‘SC’ वाले कॉलम पर टिक करने में डरना, उसकी रोज़मर्रा की सच्चाई का बयान है.

  • शोएब और चंदन की दोस्ती, ईद की बिरयानी से लेकर आखिरी सांस तक – सबकुछ असली और दिल को छू लेने वाला है.

‘होमबाउंड’ सिर्फ फिल्म नहीं, बल्कि समाज का आईना है. यह आपको सोचने पर मजबूर करती है, इंसानियत की असली परिभाषा समझाती है और याद दिलाती है कि 2020 का दर्द आज भी जिन्दा है. अगर आप ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं जो आपकी आत्मा को छू जाएं और आपको भीतर से हिला दें, तो ‘होमबाउंड’ जरूर देखें.

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