Monday - 8 January 2024 - 11:48 AM

अब बेमानी है भारतीय राजनीति में वंशवाद की बात

उत्कर्ष सिन्हा

नेहरू परिवार के वंशवाद को ले कर भारतीय राजनीति में लगातार हमले होते रहे हैं। विशेषकर भारतीय जनता पार्टी इस मामले में कांग्रेस पर हमलावर होते हुए अक्सर आरोपों की झड़ी लगा देती है। लेकिन क्या वंशवाद की ये बेल सिर्फ कांग्रेस तक ही सिमटी है ?

हालाकी ये बात सही है कि देश के तीन प्रधानमंत्री नेहरू परिवार से निकले और उस परिवार की चौथी पीढ़ी फिलहाल कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है, लेकिन इसके साथ ही यदि दूसरे दलों को देखें तो अपवाद बिरले ही बचते हैं।

कांग्रेस पर वंशवाद की पालकी ढोने का भाजपा का आरोप अटल आडवाणी युग तक काफी सही और कारगर रहा , मगर बीते 10 वर्षों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने अपना चरित्र बदला है उसके बाद यदि वंशवाद की सबसे ज्यादा नजीर कहीं है तो वह भाजपा में ही है।

उत्तर प्रदेश की बात करें तो कद्दावर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तीसरी पीढ़ी फिलहाल सरकार में मंत्रालय सम्हाल रही है। कल्याण सिंह के बाद उनके पुत्र राजवीर सिंह सियासत में आए और फिलहाल कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह योगी सरकार में मंत्री हैं।

यूपी के पूर्व नगर विकास मंत्री और बाद में राज्यपाल रहे लाल जी टंडन के पुत्र आशुतोष टंडन भी फिलहाल योगी सरकार में मंत्री पद की शोभा बाढ़ रहे हैं। राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह मंत्री भले ही न बन सके मगर भाजपा के टिकट पर विधायक हैं और पार्टी के महासचिव भी हैं।

पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के पुत्र स्वर्गीय शरद त्रिपाठी भी पिता की विरासत सम्हालते हुए सांसद बने, तो पूर्व मंत्री प्रेमलता कटियार के बेटी नीलिमा कटियार भी फिलहाल मंत्री हैं। कभी यूपी के मिनी सीएम कहे जाने वाले चार बार के सांसद गंगा चरण राजपूत के बेटे ब्रजभूषण राजपूत इस वक्त भाजपा विधायक हैं।

यूपी से बाहर भी भाजपा में एक बड़ी संख्या दूसरी पीढ़ी के नेताओं की है।  बात नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल की की जाए तो इसमें भी वंशवाद का बोलबाला साफ दिखाई देता रहा है। अटल सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे वेद प्रकाश गोयल के बेटे पीयूष गोयल भी मंत्री हैं। पीयूष गोयल की माता भी 3 बार पार्टी के टिकट पर विधायक रही थी।

परिवार वाद के आरोपों से कांग्रेस को लगातार घेरने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के पिता ठाकुर प्रसाद बिहार जनसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। राव इंद्रजीत सिंह, राव बीरेंदर सिंह के बेटे हैं जो पंजाब के मुख्यमंत्री रहे थे।

केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के पिता देबेंद्र प्रधान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रहे थे। फिलहाल भाजपा छोड़ चुके यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा को भी मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया।

मोदी सरकार के एक और प्रभावी मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल भी हिमांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इनके अलावा भी थावर चंद गहलौत और शिवराज सिंह चौहान सहित कई नेताओं के पुत्रों की पार्टी में एंट्री हो चुकी है।

क्षेत्रीय पार्टियों में ये चलन जोरों पर है। पूरे देश में आपको ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे। यूपी में मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव, सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल, चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह और अब जयंत चौधरी,  ओड़ीसा में बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक, बिहार में लालू के दोनों बेटे तेजस्वी, तेज प्रताप और बेटी मीसा यादव, जीतन राम मांझी के बेटे, रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, कर्नाटक में देवेगोड़ा के बेटे कुमारस्वामी, आंध्र में राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन रेड्डी, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव के बेटे केटी रामा राव, तमिलनाडु में करुणानिधि के बेटे स्टालिन और बेटी कनीमोझी, उत्तर पूर्व में पीए संगमा की बेटी अगाथा संगमा, महाराष्ट्र में शरद परिवार की बेटी सुप्रिया सुले के साथ ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में पैर जमा चुकी है। 

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के मुखिया प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर बादल और बहु हरसीमारत कौर हैं तो हरियाणा में चौधरी देवी लाल और भजन लाल का पूरा परिवार ही सत्ता के खेल में लगा हुआ है।

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दरअसल भारतीय समाज की संरचना ही वंशवाद पर विश्वास करती है और बड़ी आसानी से अपने नेता की अगली पीढ़ी को अपना नेता मान लेती है। यही कारण है कि ज्यादातर बड़े नेताओं के परिजन सत्ता के मोह से बच नहीं पाते और अपना उत्तराधिकार अपने ही परिवार में सौंप देते हैं।

परिवारवाद के आरोप भले ही राजनीतिक सुविधा के अनुसार लगाए जाते रहें , मगर सच्चाई तो यही है कि सत्ता के मोह से कोई भी दल और उसका नेता बच नहीं पाया है।

Radio_Prabhat
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