Wednesday - 22 October 2025 - 4:35 PM

राहुल की मेहनत पर कांग्रेसी ही पानी फेरते हैं, खरगे जी और राहुल जी को खुला पत्र

उबैदउल्लाह नासिर

सम्मानित खरगे जी,
सम्मानित राहुल जी, 

पता नहीं यह पत्र/लेख आप तक पहुंचेगा भी या नहीं, परंतु अपना कर्तव्य समझते हुए आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ। इसका कारण केवल यह है कि लाखों-करोड़ों भारतीयों की तरह मेरा भी यह दृढ़ विश्वास है कि आप दोनों के नेतृत्व में ही भारत की संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाने की लड़ाई जीती जा सकती है।

यह व्यवस्था कांग्रेस की ही देन है, कांग्रेस ने ही इस पौधे की देखभाल कर उसे वटवृक्ष बना दिया, जो विगत एक दशक से हर प्रकार के झंझावातों को झेलते हुए भी सीना ताने खड़ा है। जबकि अपने और पराये — सभी उसकी जड़ों में मट्ठा डालने में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस ही वह चाँद है जिसके इर्द-गिर्द फैले तारे (क्षेत्रीय दल) साम्प्रदायिक फासीवाद के अंधेरे में आशा की रौशनी फैला रहे हैं।

संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा की इस लड़ाई में राहुल जी के बलिदान, मेहनत, लगन, वैचारिक प्रतिबद्धता और साम्प्रदायिक फासीवाद के खिलाफ सीना तानकर खड़े रहने की दृढ़ता को आज देश और दुनिया में जो सम्मान मिला है, उसने उन्हें नेल्सन मंडेला और आंग सान सू की जैसी महान हस्तियों की पंक्ति में ला खड़ा किया है।

लेकिन दुखद यह है कि राहुल जी की यह क़ुर्बानी, मेहनत और वचनबद्धता को पार्टी के ही अंदर के लोग निष्फल कर देते हैं। चुनाव दर चुनाव यही स्थिति सामने आती रही है। हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव, सभी में पार्टी को इन्हीं भीतरघातियों के कारण हार का सामना करना पड़ा, और अब बिहार में भी वही खेल दोहराया जा रहा है।

राहुल जी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से पार्टी और महागठबंधन के प्रति जो माहौल बना था, टिकट वितरण में हुई धांधली से वह सब चौपट हो चुका है। पुराने, तपे-तपाए वफादार कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। पार्टी के सदस्य बनने से पहले ही कुछ लोगों को टिकट दे दिए गए, जो शर्मनाक है।

सबसे बड़ा उदाहरण जाले विधानसभा का है, जहां पिछले चुनाव के प्रत्याशी मशकूर अहमद का टिकट काटकर पहले नौशाद को दिया गया, फिर उनका नाम भी हटाकर ऋषि मिश्र को टिकट दे दिया गया — जो टिकट मिलने के बाद पार्टी में शामिल हुए थे। यह वही ऋषि मिश्र हैं जिन्होंने पिछले चुनाव में घोर साम्प्रदायिक माहौल बनाकर कांग्रेस प्रत्याशी मशकूर उस्मानी को हराने में भूमिका निभाई थी।

इस सीट पर मुस्लिम मतदाता लगभग 40% हैं। मशकूर अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। भले ही उनकी जीत मुश्किल हो, परंतु उनकी मौजूदगी ऋषि मिश्र की हार सुनिश्चित कर देगी, और सीट सीधे बीजेपी/JDU के खाते में चली जाएगी।

इसी तरह, एक अन्य सीट पर केवल 113 वोटों से हारे उम्मीदवार का टिकट काट दिया गया। किशनगंज से इजहरुल हसन और खगड़िया से क्षत्रपति यादव का टिकट काटना भी क्षेत्रीय स्तर पर विरोध का कारण बना है।
ऐसा प्रतीत होता है कि टिकट वितरण में ये गलतियाँ अनजाने में नहीं, बल्कि जानबूझकर किसी के इशारे पर की गई हैं या फिर जैसा इल्ज़ाम लगाया जा रहा है, “बेची” गई हैं।

चुनाव जीतने के लिए केवल नेता या पार्टी की लोकप्रियता पर्याप्त नहीं होती, बल्कि चुनावी रणनीति भी उतनी ही अहम होती है, जो वोटर लिस्ट बनने से लेकर नतीजा आने तक प्रभावी रहनी चाहिए। इस मामले में बीजेपी, कांग्रेस समेत सभी दलों से मीलों आगे रहती है।

बिहार में राहुल जी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से जो माहौल बना था, उसे संरक्षित नहीं रखा जा सका, क्या यह रणनीति की कमजोरी नहीं है? जब यह तय था कि RJD के साथ गठबंधन होगा, तो सीटों की पहचान और उम्मीदवारों का चयन कम-से-कम छह महीने पहले कर लेना चाहिए था। इससे उम्मीदवारों को बूथ स्तर तक अपनी टीम तैयार करने का समय मिलता। यही रणनीतिक कमजोरी बार-बार कांग्रेस की हार का कारण बन रही है।

एक अन्य अहम बात, पार्टी के पास लगभग 20% पक्के मुस्लिम वोट हैं, लेकिन उन्हें ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ समझा जा रहा है। बिहार में लगभग 18% मुस्लिम मतदाता हैं, तो 55 सीटों में से कम से कम 10 सीटें मुस्लिम समुदाय को मिलनी चाहिए थीं। इनमें भी 7 सीटें मुस्लिम OBC उम्मीदवारों के लिए होनी चाहिए थीं, मगर मुश्किल से 6 दी गई हैं।

सत्ता और संगठन, दोनों में उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। मुसलमान पार्टी को जो दे रहे हैं, उसके बदले में उन्हें उनका वाजिब हक़ मिलना ही चाहिए।

उत्तर प्रदेश और असम में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार, अन्याय और संवैधानिक अधिकारों के हनन पर पार्टी को आक्रामक होकर मुखर होना पड़ेगा, अब झुककर ऊँट चराने से काम नहीं चलेगा।

बिहार अभी भी जीता जा सकता है, क्योंकि नीतीश कुमार की स्थिति बेहद कमजोर है। उनका दोबारा मुख्यमंत्री बनना लगभग असंभव है, इसलिए उनका कोर वोटर अब महागठबंधन की ओर देख रहा है। यदि टिकट वितरण की गलतियों को सुधारा जा सके और राहुल जी स्वयं युद्ध-स्तर पर चुनाव अभियान चलाएँ, तो तस्वीर बदल सकती है।

भले ही कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराना है,और इसके लिए राहुल जी को पूरे बिहार को मथना होगा। आशा है कि एक चिंतित पत्रकार और नागरिक की ये कटु बातें ध्यान देने योग्य समझी जाएँगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)

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