Monday - 22 January 2024 - 2:31 AM

किस राह पर है कांगेस

न्‍यूज डेस्‍क

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कोप भवन में गए राहुल गांधी अब बाहर आ चुके हैं। अपनी जिम्‍मेदारियों से बचते हुए राहुल ने पार्टी अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा दे‍ दिया है और आज अहमदाबाद में नोटबंदी के दौरान दिए एक विवादित बयान को लेकर मानहानि केस के लिए कोर्ट में पेश होंगे। बता दें कि राहुल पिछले आठ दिनों में तीसरी बार कोर्ट में मानहानि केस में जमानत के लिए पेश होंगे। ऐसे में बिन माझी के मझधार में पड़ी कांग्रेस को इन परिस्थितियों से निकालने के लिए सियासी नाव का एक कुशल खेवैया चाहिए। पार्टी को इसकी जल्द ही तलाश करनी होगी।

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्‍यक्ष रहे राहुल चुनाव में हार के बाद से ही पार्टी से जुड़े फैसले लेने से बच रहे हैं। हालांकि जब तक नया अध्‍यक्ष नियुक्‍त नही होता है तब तक राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्‍यक्ष हैं ऐसा नियम है लेकिन फिर भी कर्नाटक, गोवा और राजस्‍थान में कांग्रेस के नेताओं में जैसी भगदड़ मची है उसे देखकर भी राहुल आगे आकर कोई फैसला नहीं ले रहे हैं।

कभी देश की सियासत का सिरमौर रही कांग्रेस आज अपने वजूद को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल नए अध्‍यक्ष की नियुक्ति को लेकर है कि आखिर इतने कमजोर समय में क्‍यों नहीं जल्‍द किसी अध्‍यक्ष की नियुक्ति हो रही है। जिस कांग्रेस की तूती कभी पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हर दिशा में बोलती थी। वही कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही है। लोकसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा के बाद करारी हार से निराश कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने पद से इस्तीफा दे दिया, तो पार्टी के नेता नया अध्यक्ष चुनने की बजाय उनकी मान-मनौव्वल में जुट गए।

एक महीने से अधिक समय तक चले मान-मनुहार के दौर के बाद आखिरकार राहुल माने भी नहीं और अब बिन कैप्टन के जहाज बन गई पार्टी को कर्नाटक, गोवा जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस नए अध्यक्ष के चुनाव के प्रति गंभीर भी नहीं। अब तक पार्टी का नया मुखिया चुनने के लिए या इस संबंध में चर्चा के लिए कार्यकारिणी की बैठक तक नहीं हुई।

अध्यक्ष पद से राहुल के जाने के बाद नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस को लेकर अब यह कहा जाने लगा है कि यह संकट जल्द नहीं सुलझा तो पार्टी खत्म हो जाएगी। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने से लेकर अभी तक के घटनाक्रम और कांग्रेस नेताओं के बयान इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी आजाद भारत में अपने सबसे बुरे दौर गुजर रही है। गुलाम नबी आजाद ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेस को खत्म करने के लिए ही भाजपा सत्ता में आई है।

जब पूरी पार्टी का ध्यान राहुल को मनाने पर रहा, पार्टी पदाधिकारियों में एक के बाद एक पद छोड़ने की होड़ लग गई। तो इन सबके बीच अध्यक्ष के बिन अनाथ कांग्रेस में अब जैसे टूट का सिलसिला भी शुरू हो गया। बता दें कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता हैं और उत्‍तर प्रदेश के प्रभारी भी हैं, यूपी कांग्रेस के पदाधिकारी इनका इस्‍तीफा मांग रहे हैं औ अंदरखाने पार्टी में इनका विरोध भी शुरू हो गया है।

कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश में पार्टी नेताओं की गुटबाजी जगजाहिर है। कमलनाथ पर पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ता जा रहा है, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक दबी जुबान उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग करने लगे हैं। इससे प्रदेश में फिर से गुटबाजी को हवा मिलने के कयास लगाए जाने लगे हैं।

इसे गोवा और कर्नाटक के घटनाक्रम से सतर्क कांग्रेस का कदम माना जा रहा, लेकिन राजनीतिक गलियारों में सिंधिया समर्थक मंत्री के बंगले पर भोज को सिंधिया द्वारा अपनी ताकत प्रदर्शित करना भी माना जा रहा है ।

दूसरी ओर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट का द्वंद खुलकर सामने आ गया है। मुख्यमंत्री गहलोत ने बजट के बाद पायलट को संदेश दे दिया कि जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था। मुख्यमंत्री बनने के लिए अपना नाम आगे कर रहे लोग गलतफहमी न पालें, तो पायलट ने पलटवार कर दिया कि जनता ने राहुल गांधी के नाम पर वोट दिया। किसी और के नाम पर नहीं।

इस दौरान पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए CWC की बैठक में कौन शामिल हो इस पर बहस छिड़ गई है। कुछ नेताओं का कहना है कि जब ऊपरी स्तर पर नियुक्तियां खाली हो तब ऐसे में पार्टी के संविधान के मुताबिक 29 स्थाई आमंत्रित सदस्य, विशेष आमंत्रित सदस्य और कार्य समिति के पुराने सदस्य नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए CWC की बैठक में शामिल नहीं हो सकते। इनके बजाय सिर्फ सिर्फ 24 पूर्णकालिक सदस्य ही अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में CWC की बैठक में हिस्सा ले सकते हैं।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सिर्फ 24 सदस्यों ने नरसिम्हा राव को कांग्रेस के नए अध्यक्ष के रूप में चुना। साल 1996 में राव के इस्तीफे के बाद जब सीताराम केसरी को चुना गया था तब यह नियम बरकरार रखा गया था। इसके बाद 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया। संयोग से, अधिकांश नेता जिन्होंने राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नए अध्यक्ष के भविष्य को लेकर अपने विचार जाहिर किए हैं, उनमें से अधिकांश CWC के पूर्णकालिक सदस्य नहीं हैं। कई आमंत्रित सदस्य इस संबंध में किसी अपवाद के घटित होने का अंदाजा लगा रहे हैं।

अब बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या अध्यक्ष पद से हटने वाले राहुल गांधी आमंत्रित सदस्यों को CWC की विशेष बैठक में शामिल होने पर सहमति देने का अधिकार रखते हैं? क्‍योंकि अभी तक कोई ऐसी मिसाल नहीं मिली है। कांग्रेस खेमे ने नियमों का पालन करने में सतर्कता बरती है ताकि है नए अध्यक्ष के चुनाव में शरारती तत्व इसे कोर्ट में चुनौती न दे सकें। बता दें कि कांग्रेस के पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने मंगलवार को पूछा था कि गांधी या उनके सलाहकारों द्वारा किसी नए पार्टी प्रमुख के चुनाव के लिए इन-हाउस चर्चा करने के लिए कोई औपचारिक सलाहकार समिति क्यों नहीं बनाई गई?

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