Friday - 12 January 2024 - 6:27 PM

असम जलने की असली वजह ये है?

न्यूज डेस्क

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों का असर भारत-जापान समिट पर पड़ा है। यह समिट असम के गुवाहाटी में रविवार से होनी थी, लेकिन जापानी के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अपना भारत दौरा स्थगित कर दिया है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्वीट कर इसकी पुष्टि की है। अपने ट्वीट में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि जल्द ही इस समिट के लिए दोनों देशों के बीच आपसी सहमति से नई तिथि निर्धारित की जाएगी।

दूसरी ओर पिछले 25 साल से बांग्लादेश से निर्वासित प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया है। तस्लीमा ने कहा, ‘मैं खुश हूं कि सरकार ने इसे पारित कर दिया। सताए हुए अल्पसंख्यकों के लिए अच्छा है। यह सही है कि अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना की जाती थी। जब हम आलोचना करते हैं तो इस्लामिक समाज हमसे घृणा करता है। हम जैसे लोगों को भी नागरिकता मिलनी चाहिए। कानून मुस्लिम विरोधी नहीं है। भारत अपनी मुस्लिम आबादी को कम नहीं कर रहा है। मुझे अपने घर की याद आ रही है। मैं बंगाल भी नहीं जा सकती।

प्रदर्शन थमने का नाम नहीं

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ असम में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहा है। असम के हिंसक विरोध प्रदर्शन में दो लोग मारे गए हैं। इस बिल के संसद में पास होने के बाद असम में शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा है। असम के लोग नागरिकता संशोधन बिल को असम समझौते के खिलाफ बता रहे हैं। इसी का हवाला देकर वहां लोग सड़कों पर उतर आए हैं। तमाम कोशिश के बावजूद माहौल में खासा तनाव है।

क्या है असम समझौता

असम समझौता भारत सरकार और असम के बीच हुआ था। 15 अगस्त 1985 को असम और भारत सरकार के बीच समझौता हुआ था। इसी समझौते के बाद असम में 6 साल से चला आ रहा आंदोलन खत्म हुआ। ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद ने नई दिल्ली में भारत सरकार से समझौता कर आंदोलन को वापस लिया था, जिसके बाद असम में शांति आई।

क्यों हुआ था असम समझौता

1979 में असम से बाहरी लोगों को निकालने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया गया था। असम में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन में कई लोगों की जान गई थी. 1985 में हुए असम अकॉर्ड में ये वादा किया गया था कि असम से बाहरी लोगों को निकालने के लिए ठोस उपाय किए जाएंगे. भारत सरकार के इस वादे के बाद ही असम में जारी बवाल खत्म हुआ था।

बातचीत के बाद हुआ था समझौता

विरोध प्रदर्शन में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। 2 फरवरी 1980 को स्टूडेंट यूनियन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि असम में बाहरी घुसपैठियों की वजह से उनकी राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुई है। इस पर खतरा मंडराने लगा है।

इसके बाद भारत सरकार और असम के स्टूडेंट्स यूनियन के बीच लंबी और कई दौर की बातचीत चली। इस बातचीत में गृहमंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री तक शामिल थे। लेकिन 1985 से पहले कोई समझौता नहीं हो सका। कई दौर की औपचारिक बातचीत के बाद 1985 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए असम और भारत सरकार के बीच समझौता हो सका। असम की समस्या के सारे पहलुओं को देखते हुए दोनों पक्षों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए। समझौते में संवैधानिक, कानूनी, अंतरराष्ट्रीय समझौते, राष्ट्रीय हितों और मानवीय अधिकार को भी ध्यान में रखा गया था।

समझौते में बाहरी लोगों को असम से बाहर करने का वादा

असम अकॉर्ड के मुताबिक कई चरणों में वहां की समस्या से निपटने के उपाय किए गए थे। इसमें घुसपैठ से निपटने, आर्थिक विकास के साथ सामान्य स्थिति बहाल करने के उपायों पर चर्चा की गई थी। असम समझौते को लागू करवाने के लिए राज्य सरकार ने 1986 में एक अलग मंत्रालय तक बना डाला था।

असम समझौते के मुताबिक असम में बाहरी लोगों की पहचान के लिए कुछ बिंदु सुझाए गए थे, जिस पर दोनों पक्ष राजी हुए थे। इसमें बाहरी लोगों की पहचान के लिए 1 जनवरी 1966 को बेस ईयर माना गया था। समझौते में कहा गया था कि जो लोग असम में 1 जनवरी 1966 से पहले आए हों, उन्हें असम का मूल निवासी माना जाएगा। साथ ही ये भी कहा गया था कि जिन लोगों ने 1967 के चुनाव में वोट डाले हों, उन्हें भी वहां का मूल निवासी माना जाएगा।

फॉरनर्स एक्ट

समझौते में कहा गया था कि 1 जनवरी 1966 के बाद और 24 मार्च 1971 से पहले असम आने वाले लोगों के विदेशी होने की पहचान 1946 के फॉरनर्स एक्ट के मुताबिक की जाएगी और उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जाएंगे। ऐसे लोगों को अपने जिलों के रजिस्ट्रेशन ऑफिस मे खुद को रजिस्टर करवाना होगा। दस साल होने के बाद इन लोगों के नाम दोबारा से मतदाता सूची में शामिल किए जा सकते हैं.

समझौते में कहा गया था कि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले लोगों की पहचान की जाएगी, मतदाता सूची से उनके नाम बाहर किए जाएंगे और असम से उन्हें बाहर करने के व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे।

नागरिकता कानून असम अकॉर्ड का उल्लंघन

भारत सरकार और असम के बीच हुए समझौते में ये भी कहा गया था कि असम की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान बचाने के लिए संवैधानिक और कानूनी उपाय किए जाएंगे। असम के लोग समझौते के इन्हीं बिंदुओं का हवाला देकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि नया नागरिकता कानून असम अकॉर्ड का उल्लंघन है।

रोटी- रोजगार का भी संकट

उनका कहना है कि नए नागरिकता कानून के यहां लागू होने के बाद असम के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर संकट पैदा हो जाएगा। बाहरी लोगों के नागरिकता हासिल कर यहां बस जाने की वजह से असम के मूल निवासी प्रभावित होंगे। उनके कामकाज से लेकर रोटी- रोजगार का भी संकट पैदा हो जाएगा। इस मुद्दे पर असम के लोग कोई समझौता करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।

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