जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए (NDA) और महागठबंधन (MGB)- दोनों गठबंधनों के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर तकरार बढ़ती जा रही है। चुनावी रण शुरू होने से पहले ही साथी दलों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं।
महागठबंधन में अब तक सीटों पर सहमति नहीं बन सकी है, जबकि एनडीए में भले ही सीटों का बंटवारा हो चुका हो, लेकिन असंतोष की चिंगारी वहां भी भड़क उठी है।
जेडीयू प्रमुख और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर आरएलजेपी के उपेंद्र कुशवाहा तक अपनी-अपनी नाराजगी खुले तौर पर जाहिर कर रहे हैं।
नीतीश की नाराजगी और ‘तारापुर टिकट विवाद’
जानकारी के अनुसार, उपेंद्र कुशवाहा कम सीटें मिलने से असंतुष्ट हैं, वहीं नीतीश कुमार की नाराजगी का कारण तारापुर सीट मानी जा रही है।
मुख्यमंत्री नहीं चाहते थे कि बीजेपी इस सीट से सम्राट चौधरी को उम्मीदवार बनाए, लेकिन बीजेपी ने उनकी आपत्ति को नजरअंदाज करते हुए सम्राट चौधरी को मैदान में उतार दिया।
इस फैसले के कुछ घंटे बाद ही जेडीयू ने चिराग पासवान की एलजेपी (LJP) के हिस्से में आई चार सीटों — एकमा, गायघाट, राजगीर और सोनबरसा- पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। यह वही सीटें हैं जिन पर 2020 के चुनाव में एलजेपी ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था।
दिलचस्प यह है कि गायघाट में नीतीश ने न केवल चिराग की सीट ली, बल्कि उनकी उम्मीदवार कोमल सिंह को ही जेडीयू का टिकट दे दिया। वहीं राजगीर से कौशल किशोर और सोनबरसा से रत्नेश सदा को पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया है।

गायघाट: एलजेपी ने पहुंचाई थी जेडीयू को चोट
मुजफ्फरपुर जिले की गायघाट सीट बिहार की राजनीतिक दृष्टि से अहम मानी जाती है। 2020 में आरजेडी उम्मीदवार निरंजन रॉय ने यहां जीत दर्ज की थी। एलजेपी की कोमल सिंह तीसरे स्थान पर रही थीं, लेकिन उनके कारण जेडीयू को भारी नुकसान झेलना पड़ा था।
राजगीर: बीजेपी का पारंपरिक गढ़
नालंदा जिले की राजगीर सीट पर अब तक 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें से नौ बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है। 2015 में जेडीयू के रवि ज्योति कुमार ने बीजेपी के सत्यदेव नारायण आर्य को हराया था। 2020 में एनडीए के दोबारा साथ आने के बाद जेडीयू के कौशल किशोर ने यह सीट अपने नाम की थी।
सोनबरसा: जेडीयू की मजबूत पकड़ बरकरार
सहरसा जिले की सोनबरसा सीट, 2010 में अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित घोषित की गई थी। इसके बाद से यहां जेडीयू ने लगातार तीन बार जीत हासिल की है। विधायक रत्नेश सदा ने 2010, 2015 और 2020 — तीनों चुनावों में जीत दर्ज की है।
एकमा: जेडीयू की हार और आरजेडी की वापसी
सारण जिले की एकमा सीट 1952 में अस्तित्व में आई थी और परिसीमन के बाद 2010 से फिर सक्रिय हुई। 2020 के चुनाव में आरजेडी के श्रीकांत यादव ने जेडीयू की सीता देवी को लगभग 14 हजार वोटों के अंतर से हराया था। एलजेपी उम्मीदवार कामेश्वर कुमार सिंह तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उनके वोटों ने जेडीयू की हार सुनिश्चित कर दी।
गठबंधन में तनाव बरकरार
इन चार सीटों पर उम्मीदवार उतारकर नीतीश कुमार ने अपने असंतोष का इशारा साफ कर दिया है। जहां एक ओर महागठबंधन अब तक सीटों पर सहमति नहीं बना सका है, वहीं एनडीए में सहयोगियों के बीच की यह खींचतान आने वाले चुनावी समीकरणों को और दिलचस्प बना रही है।
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