Saturday - 6 January 2024 - 2:05 AM

स्वास्थ्य महानिदेशालय ने गबन के आरोपी बाबू को बचाया था, अब फिर होगी जांच

स्पेशल डेस्क
लखनऊ।प्रदेश की योगी सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की पालिसी अपना रही है, लेकिन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशालय के बडे़ अधिकारी हैं ,कि करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार में फंसे सीएमओ कार्यालय के एक कनिष्ठ लिपिक को बचाने के लिए जांच के बाद जांच करा रहे हैं। मामला जुड़ा हुआ है मुख्य चिकित्सा अधिकारी संभल में तैनात कनिष्ठ लिपिक विनय शर्मा से। सीएमओ संभल के कनिष्ठ लिपिक विनय शर्मा के विरूद्ध गबन की शिकायत मिलने पर जिले स्तर पर डाक्टरों की जांच कमेटी बनायी गयी ।
जांच कमेटी ने विनय शर्मा को भारी सरकारी धन के गबन का आरोपी पाया था। परंतु महानिदेशालय के उच्चाधिकारियों ने जांच का खेल रचा और पूरे अभिलेख न मिलने पर भी जांच को परी करके विनय शर्मा के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।
आजमगढ़ सदर से विधायक दुर्गा प्रसाद यादव ने इस मामले को विधानसभा में भी उठाया था और कार्रवाई ना होते देख माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश को भी अवगत कराया कि मामले को अधिकारी दबा रहे हैं और इसकी प्रतिलिपि प्रमुख सचिव , चिकित्सा एवं महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण को दी गई है लेकिन अधिकारियों ने इस लिपिक के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि तमाम जमान जनप्रतिनिधियों की शिकायतों को दरकिनार करके विनय शर्मा को निलंबित भी नहीं किया गया और ना ही कोई कार्यवाही की गई बल्कि आरोपी ना मानते हुए कनिष्ठ लिपिक का प्रमोशन भी कर दिया गया।
पिछड़ा दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग संघ के अध्यक्ष डॉक्टर इन्द्र दयाल गौतम ने भी इस संबंध में शिकायत की है।
मुरादाबाद के डॉक्टर एस के शर्मा ने तो पूरे साक्ष्य के साथ कनिष्ठ लिपिक पर सारे आरोपों को प्रमाणित करते हुए पत्र भेजा। अधिकारियों ने जांच का दिखावा करके, एक इन्क्रीमेण्ट रोकते हुए बरेली जैसे बड़े जिले के सी एम ओ कार्यालय में ट्रांसफर कर दिया।

मुख्य आरोप क्या है?

मुख्य चिकित्सा अधिकारी संभल के अधीन सीएचसी मनौटा में तैनात विनय शर्मा मुख्यालय पर जिले का भी काम देखता था। सीएचसी मनौटा पर तैनाती के दोरान शर्मा पर वर्ष 2014 से ही कर्मचारियों औरअधिकारियों के लगभग 7,00000 (सात लाख रूपये) स्वयं के और दूसरे फर्जी खातों में ट्रांसफर करके निकालने और कई चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के जीपीएफ के पैसे भी हड़पने के आरोप लगे । बिना परमिशन लिये विदेश यात्रा (थाईलैंड) की गई। इसके प्रमाण उसके खातों से हुए ।
इसने अपना फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट भी कार्यालय में सबमिट कर दिया । पुष्टि कराने पर मेडिकल सर्टिफिकेट ,फर्जी प्रमाणित हुआ। पिछड़ा दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग संघ के अध्यक्ष डॉक्टर इन्द्र दयाल गौतम के अनुसार रिटायर्ड कर्मचारियों से लाखों रुपए रिश्वत लेकर भी शर्मा ने उनके फंड तक नहीं दिए।
जनप्रतिनिधियों की तमाम शिकायतों और साक्ष्यों के बाद भी खास बात यह रही कि शर्मा के विरुद्ध मुख्यालय के अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि जांच के नाम पर इस कार्यवाही को भटकाते रहे। अंत में केवल एक इंक्रीमेंट (सूक्ष्म पनिशमेंट ) रोका और सीएमओ बरेली के अधीन उसका स्थानांतरण कर दिया गया। जबकि करोड़ों रुपए के गबन,बिना परमिशन के विदेश यात्रा और फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए निलंबन के साथ-साथ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए थी।
महानिदेशालय के अधिकारी करते हैं मनमानी- महानिदेशालय के अधिकारियों की मनमानी देखने को तब मिली जब लगभग 3 साल से निलंबित एक जिले के लिपिक को दोषी ना पाते हुए भी,रिश्वत के फेर में बहाल नहीं कर रहे थे जब माननीय उच्च न्यायालय में प्रकरण गया तभी एक इंक्रीमेंट रोकते हुए उसकी बहाली की गई। गबन के दोषी और दोष मुक्त को एक ही सजा,यह है मनमानी।
अब फिर हो रही है जांच- जानकारी के अनुसार सी एम ओ और अन्य लिपिकों के विरूद कारवाई करने तथा सी एम ओ संभल में हुई अनियमितता की जांच के लिये निदेशक(स्वास्थ्य) की अगुवाई में एक जांच कमेटी बनाई गयी है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी संभल को निदेशक स्वास्थ्य की ओर से दिनांक 13 दिसंबर को एक पत्र भेजा गया है। जिसमें 2015- 16 ,16 -17 एवं 17 -18 के वित्तीय व्यवहारों की जांच की बात कही गई है। जबकि कनिष्ठ लिपिक शर्मा द्वारा 2014 से ही वित्तीय गड़बड़ियां, की जा रहीं थीं। और इसके अलावा रिटायर्ड कर्मचारी /अधिकारी जिनको उनके फण्ड नहीं मिले उनको कमेटी के सामने बुलाने की बात नहीं कही गई है।
तत्कालीन लिपिक धीरज सक्सेना और लिपिक विनय शर्मा को व्यक्तिगत खातों का विवरण नहीं मांगा गया है। शर्मा लिपिक द्वारा बिना परमिशन के की गई विदेश यात्रा और फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट से संबंधित कोई भी अभिलेख नहीं दिखाने को कहा गया है।
कमेटी को विनय शर्मा के स्टेट बैंक खाता सं- 00000032122908278 का संज्ञान लेना चाहिये जिसमें से दिनांक 22.06.2017 में 1,10,921रूपये का मेक माइ ट्रिप को ट्रांसफर किया गया था। शासन के दबाव में जांच कमेटी बनाने से साफ होता है कि यह जांच भी केवल दिखावा होगी। सूत्र बताते हैं कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने इसके गबन के आरोप को उजागर किया था।
इसीलिए इसने कई लोगों से फर्जी शिकायतें अपने फेवर में कराई थी। ताकि उनकी भी जांच हो सके उन्हीं की शिकायत पर यह जांच हो रही है। जबकि इसके विरूद्ध की गई जांच ऊपर कोई भी खास जांच नहीं की गई और करोड़ों के गबन का मामला भी दब गया था। देखना होगा कि जांच कमेटी कितनी पारदर्शी और निष्पक्ष रहेगी और 2014 से इसके किए गए कारनामों और विदेश यात्रा तथा फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट की भी जांच होती है या नहीं?
https://youtu.be/SuE0xs6Jvgw
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