Saturday - 6 January 2024 - 2:15 PM

आखिर दिल्ली में नफरत हार ही गई

न्यूज डेस्क

दिल्ली की जनता ने अपना नायक चुन लिया है। जनता ने उसे अपना नायक चुना है जिसे बीजेपी के एक सांसद ने आतंकवादी कहा था। पूरे चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी नेता इस जुमले को दोहराते रहे और उसे घेरने के लिए ऐसा चक्रव्यूह बनाया जिसे तोडऩा आसान नहीं था। लेकिन कहते हैं कि राजनीति में जनता जर्नादन होती है और यह फलसफा दिल्ली के चुनाव में पूरी तरह से सही साबित हुआ।

आने वाले समय में दिल्ली के इस चुनाव की चर्चा खूब होगी। यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी के प्रयोग की वजह से याद किया जायेगा। बीजेपी ने इस चुनाव खूब प्रयोग किए। बीजेपी नेताओं के विवादित बोल के जरिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की पुरजोर कोशिश की गई, लेकिन बिरयानी, आतंकवादी, गोली मारने के नारे बीजेपी के काम नहीं आए। वैसे तो देश श्मशान-कब्रिस्तान जैसे चुनाव प्रचार यूपी में देख चुका है लेकिन दिल्ली के चुनाव को ध्रवीकरण की कोशिश के लिए यादगार चुनावों में गिना जाएगा।

बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह जैसे नेता छोटी-छोटी सभाएं आयोजित करके शाहीन बाग, बिरयानी, देशद्रोही, पाकिस्तान और आतंकवाद की बातें करते रहे।

दिल्ली चुनाव के दौरान कुछ बयानों के जरिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की पुरजोर कोशिश की गई। जैसे-“आतंकवादियों को बिरयानी खिलाने के बजाय बुलेट (बंदूक की गोली) खिलानी चाहिए।”, “अरविंद केजरीवाल आतंकवादी है।”, “शाहीन बाग के लोग घर में घुसकर आपकी बहू बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे।”, “देश के ग़द्दारों को “गोली मारो सा*** को।”

विकास वर्सेज राष्ट्रवाद

दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा तो वहीं बीजेपी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर। बीजेपी ने शाहीन बाग के बहाने हिंदू-मुस्लिम बनाने की कोशिश की। इस मुद्दे पर केजरीवाल को लगातार बीजेपी घेरने में लगी रही, लेकिन केजरीवाल बड़ी चतुराई से इससे निकलने में कामयाब रहे।

ऐसा नहीं है कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी के पास दूसरे मुद्दे नहीं थे। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के विकास की बात दोहराई और केजरीवाल सरकार को “केंद्र सरकार की अच्छी स्कीमों में रुकावट पैदा करने” का जिम्मेदार ठहराया। मोदी ने केजरीवाल के मोहल्ला क्लिनिक की काट के लिए बार-बार कहा कि दिल्ली सरकार ने आयुष्मान भारत स्कीम को लागू नहीं किया।

इसके अलावा बात रोजगार, पीने के साफ पानी, बेहतर सड़कें और मूलभूत सुविधाओं में बुनियादी बदलाव लाने की भी हुई। इतना ही नहीं बात ज्यादा विदेशी निवेश, गरीबों के लिए घर और उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के वायदे की भी हुई, लेकिन इस सबके बीच चंद मुद्दे सुबह-शाम की चाय की तरह लगभग हर चुनावी सभा के भाषणों में तैरते रहे। वो सारे मामले ध्रुवीकरण को गहरा करने के मकसद से ही उठाए जा रहे थे।

दरअसल बीजेपी को इस बात का एहसास था कि वह इन मुद्दों पर चुनाव नहीं जीत पायेगी इसीलिए उसने अपने पुराने हथियार का इस्तेमाल किया। गृहमंत्री अमित शाह और कई बड़े नेताओं ने भारत की सीमाओं को मजबूत और देश को ‘दुश्मनों की पहुंच से बाहर” बताया। शाह ने बार-बार याद दिलाया कि भारत ने किस तरह पाकिस्तान की बुरी हालत कर दी है और अब वह डर से कांपता है।

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चुनाव प्रचार के दौरान कौन कितना भारतीय है, किसके अंदर राष्ट्रवाद की भावना ज़्यादा है और किसमें कम है, जो नागरिकता संसोधन कानून का विरोध कर रहे हैं वे नहीं चाहते कि पड़ोसी देशों में प्रताड़ित  अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिले, जैसी बातें की गई।

बार-बार बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों की बात हुई और बीजेपी से जुड़े नेता लगातार बताते रहे कि किस तरह भारत में बांग्लादेशी घुसपैठिए घुस आए हैं और केंद्र सरकार उन्हें निकालने में किस कदर जुटी हुई है, बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या कभी एक करोड़, तो कभी दो करोड़ बताई गई।

इतना ही नहीं प्रचार के दौरान बीजेपी नेताओं ने यह भी कहा कि जिसे भारत पसंद न हो उसे कहीं और जाने से किसने रोका है और सैकड़ों सालों तक विदेशी शासकों ने भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं पर शासन किया, अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सोशल मीडिया से लेकर चुनावी मंचों से लटकते भारी-भरकम लाउड स्पीकरों से ज्यादातर बातें कुछ इस तरह की ही निकलीं।

आम आदमी पार्टी को घेरने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी फौज उतार दी थी। मैदान में 250 सांसदों के साथ-साथ बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रात-दिन प्रचार करते रहे, यहां तक कि सांसदों को रात में झुग्गी बस्तियों में रुकने को कहा गया। यह झुग्गी बस्तियों में केजरीवाल की पकड़ की काट करने की कोशिश थी, बावजूद इसके दिल्ली में बीजेपी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई।

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