जुबिली न्यूज डेस्क
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक अबू आसिम आजमी ने वारी यात्रा को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान पर माफी मांग ली है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद वारकरी संप्रदाय या किसी धार्मिक परंपरा को ठेस पहुंचाना नहीं था, बल्कि अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भेदभाव पर सरकार का ध्यान आकर्षित करना था। साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बयान को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया।
क्या कहा था अबू आजमी ने?
अबू आजमी ने हाल ही में पंढरपुर वारी के जुलूस की तुलना सड़क पर पढ़ी जाने वाली नमाज से करते हुए कहा था:“हिंदू त्योहारों के दौरान सड़कों पर जुलूस निकलते हैं, लेकिन मुसलमानों की दस मिनट की नमाज को लेकर शिकायत होती है।”
उन्होंने कहा कि पुणे से निकलते समय उन्हें सलाह दी गई थी कि जल्दी निकलो, पालकी जुलूस के कारण सड़कें बंद हो जाएंगी। उनके इसी बयान को लेकर वारकरी समुदाय में आक्रोश फैल गया।
X (ट्विटर) पर लिखी सार्वजनिक माफी
अबू आजमी ने सोशल मीडिया पर लिखा:“मेरे वक्तव्य को दुर्भावनापूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया। अगर इससे वारकरी समुदाय की भावना आहत हुई हो, तो मैं अपने शब्द पूरी तरह वापस लेता हूं और क्षमा चाहता हूं।”उन्होंने खुद को एक समर्पित समाजवादी बताते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा सभी धर्मों, संतों और परंपराओं का सम्मान किया है।
“मेरी लड़ाई बराबरी और हक़ की
आजमी ने सफाई देते हुए कहा कि:“मेरी मंशा कभी किसी धर्म या परंपरा के खिलाफ नहीं रही। मैं केवल अल्पसंख्यक समाज के साथ हो रहे भेदभाव को उजागर करना चाहता था। जब प्रधानमंत्री कहते हैं – सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास – तो अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार मिलना चाहिए।”
“अस्मिता से खेलोगे तो यहीं दफन कर देंगे”
इस पूरे मामले को लेकर भाजपा आध्यात्मिक मोर्चा के अध्यक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा:“अगर महाराष्ट्र की अस्मिता से खेला गया तो उन्हें यहीं दफन कर देंगे।”भाजपा ने अबू आजमी पर राजनीतिक स्टंट और धार्मिक भावनाओं से खेलने का आरोप लगाया।
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पिछले विवाद भी रहे हैं चर्चा में
अबू आजमी पहले भी कई विवादों में रह चुके हैं। हाल ही में उन्होंने मुगल बादशाह औरंगज़ेब पर बयान दिया था, जिसके चलते देशभर में प्रदर्शन हुए और कानूनी कार्यवाही भी हुई थी।
अबू आजमी की माफी के बाद भी विवाद शांत होता नजर नहीं आ रहा है। जहां एक तरफ उन्होंने अपनी मंशा को साफ कर दिया है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों का गुस्सा बरकरार है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या वाकई माफी से विवाद थमेगा या सियासी सुलग जारी रहेगी।