जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश में मीट उद्योग से जुड़े एक संवेदनशील मामले ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। राज्य में कई मीट कंपनियों की सुरक्षा कश्मीरी मूल की निजी सिक्योरिटी एजेंसियों को दी जाने की जानकारी के बाद यूपी एटीएस ने मामले की गहन जांच शुरू कर दी है। यह कार्रवाई आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के फरीदाबाद मॉडल के खुलासे और केंद्रीय खुफिया इनपुट के बाद शुरू की गई है।

इनकम टैक्स छापों में हुआ बड़ा खुलासा
करीब तीन साल पहले इनकम टैक्स विभाग ने राज्य की आधा दर्जन मीट कंपनियों पर छापेमारी की थी। जांच में पता चला कि इन कंपनियों ने सुरक्षा के लिए कश्मीर के पुंछ और राजौरी मूल की निजी सिक्योरिटी एजेंसियों को अनुबंध दिए थे। एजेंसियों के पते बरेली, मेरठ, मुंबई, नोएडा, दिल्ली और आगरा में बताए गए थे, जो अब संदेह के घेरे में हैं।
1200 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं
जांच में रहबर फूड, रुस्तम फूड और मारिया फ्रोजन जैसी बड़ी कंपनियों के बरेली, उन्नाव और लखनऊ स्थित ठिकानों पर छापे पड़े। दस्तावेजों से पता चला कि संचालकों ने 1200 करोड़ रुपये के फंड का कोई स्पष्ट हिसाब नहीं रखा। इनकम टैक्स रिपोर्ट में आशंका जताई गई कि यह रकम कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को फंडिंग में जा सकती है।
देवबंद की कट्टरपंथी संस्था को फंडिंग का शक
जांच में संकेत मिले कि कुछ रकम देवबंद की एक कट्टरपंथी संस्था को भी भेजी गई। हालांकि लेन-देन की वजह स्पष्ट नहीं है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसे गंभीर मान रही हैं।
कश्मीर मूल के लोगों पर संदेह
मीट कंपनियों ने खाड़ी देशों के व्यापार के लिए कश्मीर के रहने वाले कई लोगों को नियुक्त किया था। जांच में कुछ अनुवादकों की लोकेशन कई बार पाकिस्तान में पाई गई, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा खतरा है।
देश विरोधी गतिविधियों का शक
रिपोर्ट में उल्लेख है कि संवेदनशील इलाकों के युवाओं का मीट कंपनियों में काम करना और वहां से बड़ी मात्रा में नकदी कट्टरपंथी संगठनों को भेजा जाना देश विरोधी गतिविधियों का संकेत है। यूपी एटीएस और केंद्रीय खुफिया एजेंसियां इस मामले की निगरानी कर रही हैं और आगे बड़ी कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।
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