जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: बिहार में मतदाता सूची संशोधन (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि 65 लाख हटाए गए वोटरों का डेटा सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि इन नामों को वेबसाइट पर डालें ताकि लोग सच्चाई जान सकें।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकार राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर निर्भर नहीं होने चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि “ऐसी क्या व्यवस्था है जिससे परिवार को पता चले कि उनके सदस्य को मृतक मानकर सूची से हटा दिया गया है?”
कोर्ट ने सुझाव दिया कि हटाए गए नामों की सूची वेबसाइट पर प्रकाशित की जाए, जिसमें आधार नंबर, ईपीआईसी और नाम हटाने का कारण साफ लिखा हो। कोर्ट ने पूछा कि यह कब तक किया जा सकता है, और जस्टिस बागची ने 48 घंटे की समयसीमा सुझाई।
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने कहा कि हम विधानसभा क्षेत्रवार वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्ध कराएंगे। हटाए गए लोगों की सूची जिला स्तर पर जारी होगी। आयोग ने बताया कि बूथ स्तर पर बीएलओ की संख्या बढ़ाई गई है और मृतकों की पहचान के लिए घर-घर अभियान चलाया जाएगा।
2003 के दस्तावेज़ और कानूनी सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में हुए संशोधन पर भी जानकारी मांगी। आयोग ने कहा कि अनुच्छेद 324 और धारा 21(2), 21(3) के तहत आयोग के पास एसआईआर करने की शक्ति है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1 जनवरी 2003 की तारीख को हटाने से बड़ा असर पड़ेगा।
आंकड़ों पर नजर
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कुल मतदाता (1 जनवरी 2025 तक): 7.89 करोड़
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फॉर्म भरे गए: 7.24 करोड़
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हटाए गए नाम: 65 लाख, जिनमें 22 लाख मृतक बताए गए।
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ड्राफ्ट वोटर लिस्ट: 1 अगस्त को प्रकाशित
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अंतिम सूची: 30 सितंबर को जारी होगी।
विवाद और विपक्ष का आरोप
विपक्ष का कहना है कि इस प्रक्रिया से लाखों लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। इसको लेकर लगातार हंगामा जारी है।
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