जुबिली न्यूज डेस्क
पटना | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। खास बात यह रही कि इस पद के लिए उनके खिलाफ कोई अन्य उम्मीदवार सामने नहीं आया, जिससे वह निर्विरोध चुने गए। जहां RJD खेमे में इसे जश्न के रूप में देखा जा रहा है, वहीं विपक्ष ने इसे आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर मज़ाक करार दिया है।
विपक्ष का हमला: “लोकतंत्र के नाम पर परिवारवाद”
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के सांसद अरुण भारती ने लालू यादव की नियुक्ति पर सवाल खड़े करते हुए कहा:“जब तेजस्वी यादव बार-बार कहते हैं कि उनकी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र है, तो यह चुनाव तानाशाही का उदाहरण बन गया। कोई दूसरा नाम सामने क्यों नहीं आया? क्या RJD केवल एक परिवार तक सीमित रह गई है?”
अरुण भारती का यह भी दावा है कि पार्टी में डर और दबाव का ऐसा माहौल है कि कोई वरिष्ठ नेता भी नामांकन दाखिल करने की हिम्मत नहीं कर सका।
RJD में परिवारवाद पर पुराना आरोप
RJD लंबे समय से लालू परिवार के वर्चस्व को लेकर चर्चा में रही है।
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पहले लालू यादव ने पार्टी की बागडोर संभाली।
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फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं।
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अब बेटा तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता और पार्टी के प्रमुख चेहरे हैं।
इस पृष्ठभूमि में विपक्षी दलों का आरोप है कि RJD में लोकतांत्रिक प्रक्रिया केवल कागज़ों पर ही मौजूद है, असल में यह पार्टी एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है।
तेजस्वी यादव की चुप्पी पर सवाल
दिलचस्प बात यह रही कि इस चुनाव पर तेजस्वी यादव की ओर से कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं आई।
हालांकि, पार्टी प्रवक्ताओं ने विपक्ष के सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि:“लालू प्रसाद यादव पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं। उनका अनुभव, संघर्ष और नेतृत्व पर किसी को शक नहीं है। पार्टी एकजुट होकर उनके साथ खड़ी है।”
राजनीतिक घमासान तेज, विपक्ष ने मोर्चा खोला
RJD अध्यक्ष पद को लेकर लोजपा के अलावा बीजेपी और जेडीयू ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
विपक्ष अब इस मुद्दे को लेकर आगामी विधानसभा चुनावों में जनता के बीच ले जाने की तैयारी कर रहा है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि RJD में लोकतंत्र नहीं, बल्कि वंशवाद हावी है।
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लालू यादव का एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना जहां पार्टी के लिए संघर्ष के दिनों की वापसी का संकेत माना जा रहा है, वहीं विपक्ष के लिए यह लोकतंत्र बनाम परिवारवाद की नई बहस का मुद्दा बन गया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि RJD इस आलोचना का जवाब राजनीतिक मजबूती से देती है या चुप्पी साधे रहती है।