जुबिली न्यूज डेस्क
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर ‘अखंड भारत’ का राग छेड़ा है। इस बार भागवत ने दावा करते हुए कहा कि भाररत 20-25 साल में तो अखंड भारत बन जाएगा, लेकिन हम कोशिश करेंगे तो 15 साल में भी ऐसा हो सकता है।
आरएसएस प्रमुख भागवत ने ये बातें हरिद्वार में कहीं। उन्होंने साथ में ये भी कहा कि इसे कोई रोकने वाला नहीं है। जो इसके रास्ते में आएंगे, वो मिट जाएंगे।

ये पहली बार नहीं है, जब मोहन भागवत ने अखंड भारत की बात कही हो। पिछले साल फरवरी में भी एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि दुनिया के कल्याण के लिए गौरवशाली अखंड भारत की जरूरत है। छोटे किए गए भारत को फिर से एकजुट करने की जरूरत है।
मोहन भागवत ने उस कार्यक्रम में कहा था कि जब बंटवारा संभव है तो फिर अखंड भारत भी संभव है।
मोहन भागवत के अखंड भारत के बयान पर सियासत भी जारी है। हैदराबाद से सांसद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘अखंड भारत की बातें मत करो। चीन भारत के इलाके पर कब्जा करके बैठा है, जहां भारतीय सेना पेट्रोलिंग भी नहीं कर पाती, उसकी बातें करो।’
ओवैसी के अलावा शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी चुटकी लेते हुए कहा कि मोहन भागवत को ये काम 15 साल में नहीं, बल्कि 15 दिन में कर देना चाहिए। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, श्रीलंका और कंधार को भारत में मिला लेना चाहिए।
बहरहाल, इस सियासी बहस से अगर बाहर निकलकर सोचें कि क्या वाकई ‘अखंड भारत’ हो सकता है? तो इसका जवाब अभी कोई नहीं दे सकता।
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आरएसएस और भाजपा अखंड भारत की वकालत करते जरूर है लेकिन यह कैसे होगा? इसका जवाब उनके पास भी नहीं है।
अभी तो ये भी साफ नहीं है कि मोहन भागवत के अखंड भारत की परिभाषा क्या है। ऐसा भारत जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हों या ऐसा भारत जिसमें पाकिस्तान-बांग्लादेश के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका भी हों। या फिर ऐसा भारत जिसमें इन सबके साथ-साथ कंबोडिया, मलेशिया, वियतनाम और इंडोनेशिया भी हों।
जब अखंड भारत की बात हो रही हो तो ये जानना भी जरूरी है कि शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू भी इसकी वकालत करते रहे हैं।
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साल 2014 में उन्होंने कहा था कि अखंड भारत ही कश्मीर समस्या का समाधान है। हालांकि, जस्टिस काटजू यूरोपियन यूनियन की तर्ज पर भारत को संगठित करने का फॉर्मूला देते हैं। यानी, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश साथ रहें और इन तीनों की अपनी-अपनी सरकारें भी हों। इन तीनों सरकार के ऊपर एक और सरकार होगी। यही फॉर्मूला यूरोपियन यूनियन में चलता है। वहां सभी देशों की अपनी-अपनी सरकार है और एक यूरोपियन यूनियन की भी सरकार जिसकी संसद भी है।
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