Sunday - 7 January 2024 - 6:07 AM

जब लगातार काम करने के बाद थकावट ना हो…समझ लेना सफलता का नया इतिहास रचने वाला हैं

जब सफलता की ख्वाहिश आपको सोने ना दे
जब मेहनत के आलावा और कुछ अच्छा ना लगे
जब लगातार काम करने के बाद थकावट ना हो
समझ लेना सफलता का नया इतिहास रचने वाला है

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

ये लाइन नीरज ने 15 नवम्बर साल 2017 ट्वीट में कही थी। इन लाइनों को पढ़कर समझा जा सकता है कि नीरज के सीने में कितनी आग थी और जो खेल के प्रति उनका समर्पण और जुनून को दिखाती है।

टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने इतिहास रचते हुए भारत को एथलेटिक्स में पहली बार पदक दिलाया है। जिस पदक की आस बरसों से थी उसे नीरज ने 87.58 मीटर का बेस्ट थ्रो फेंकते हुए पूरा कर दिया है और देश को टोक्यो ओलम्पिक में पहला स्वर्ण पदक दिला दिया है।

नीरज जब टोक्यो रवाना हो रहे थे तब अपने पहले ओलम्पिक को लेकर काफी उत्साहित थे और ओलम्पिक को लेकर उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि वो अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे।

इस दौरान उन्होंने देश से समर्थन मागा था। इसी दौरान एक यूजर ने लिखा था कि भाई जैवलिन को चांद तक फेंक देना। इस प्रतिक्रिया पर लेागों ने उस समय खूब रीट्वीट किया था लेकिन अगर देखा जाये तो सच में नीरज ने जो भाला टोक्यो ओलम्पिक में फेंका है वो शायद भले ही चांद पर न गया हो लेकिन भारत को सोना जरूर दिला गया है।

जिस गोल्ड की सभी को लंबे समय से दरकार थी, वो आस आज नीरज चोपड़ा ने जेवलिन में पूरी कर दी है। शानदार प्रदर्शन करते हुए नीरज ने सभी को पछाड़ दिया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

बरसो की टीस थी

भले ही आम इंसानों की नजर में एक सेकंड बहुत छोटा वक्त माना जाता हो लेकिन खेलों की दुनिया में एक-एक सेकंड काफी अहम होता है। इतना ही नहीं भारतीय खेल जगत के लिए सेकंड का 100वां हिस्सा भी काफी बड़ा अंतर साबित होता है। अगर आप थोड़े अतीत में जायेगे तो आपको पता चलेगा कि ये सेकंड कितने अहम होते हैं। थोड़ी सी गफलत मेडल से दूर कर देती है।

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ओलिंपिक में ट्रैक ऐंड फील्ड में कई ऐसे वक्त आये जब भारत पदक जीतने के कगार पर था लेकिन जीत नहीं सका। भारत एथलेटिक्स में इस टीस को सालों से झेला।

चाहे साल 1960 का रोम ओलिंपिक हो जहां मिल्खा सिंह 0.01 सेकंड के अंतर से मेडल से चूके थे या फिर 1984 के लॉस ऐंजलिस ओलिंपिक में ‘उडऩपरी’ पीटी ऊषा इतन कम वक्त से पदक से चूक गई थीं लेकिन इस बार इतिहास बदला हुआ नजर आ रहा है। दरअसल टोक्यो ओलंपिक 2020 में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है।

हालांकि उस दौर में ट्रैक पर मिल्खा और पीटी ऊर्षा की तूती बोलती थी और सारा खेल रफ्तार पर टिका रहता था लेकिन नीरज के मामले में सारा खेल दूरियों पर टिका था। जो जितना दूर भाला फेंकेगा वहीं चैम्पियन होगा। नीरज ने सभी खिलाडिय़ों को पछाड़ दिया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

https://twitter.com/Tokyo2020hi/status/1423983726980001798?s=20

एथलेटिक्स में भारत का यह पहला पदक है। शनिवार को फाइनल मुकाबले में चोपड़ा ने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर का बेस्ट थ्रो करके स्वर्ण पदक अपने नाम किया। भारत के आखिरी इवेंट में भारत को गोल्ड मेडल दिलाकर खेलों के महाकुंभ का स्वर्णिम अंत किया।

नीरज के गौरवमयी प्रदर्शन को कलाजगत का सलाम

टोक्यो ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा ने देशवासियों का दिल जीतने से भी बड़ा कारनामा कर दिखाया है। भाला फेंक में उनके इस पराक्रम से कला जगत में भी हर्ष और उत्साह का माहौल है।

फोटो : आर्ट टीचर नयन नगरकर

तिरुनेलवेली के विजयनारायणन स्थित केंद्रीय विद्यालय के आर्ट टीचर नयन नगरकर ने  नीरज चोपड़ा का जीवंत रेखाचित्र बनाया है। नयन ने यह चित्र नीरज चोपड़ा और भारत देश को विश्व पटल पर मिली शानदार जीत के लिए समर्पित किया है। उनका मानना है कि कलाविदों को भी खिलाड़ियों के चित्र बनाकर उन्हें सम्मानित महसूस कराना चाहिए।

लखनऊ में जश्न का माहौल

नीरज के सोने जीतने के बाद पूरे देश में जश्न का माहौल है। लखनऊ एथलेटिक्स संघ के सचिव बीआर वरूण ने जुबिली पोस्ट से बातचीत में कहा कि उनकी इस कामयाबी पर ना सिर्फ खेल जगत बल्कि देश का हर एक कोना आनंदित है। उन्होंने कहा कि नीरज ने पूरी दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाया है।

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उन्होंने बताया कि आज सुबह से उनके मैच को देखने के लिए स्थानीय खिलाडिय़ों में उत्सुकता थी। जैसे ही उन्होंने पदक जीता है कि यहां खिलाडिय़ों जश्न का माहौल है। केडी सिंह बाबू स्टेडियम में सभी खिलाडिय़ों ने मिलकर मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया।

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यहां तक पहुंचना भी काफी दिलचस्प है

बताया जाता है कि उन्होंने अपना वजन कम करने के लिए एथलेटिक्स में अपना कदम रखा था लेकिन किसी पता था कि यहीं एक दिन ओलम्पिक में सोना दिलायेंगा। नीरीज का वजह 12 साल की उम्र में 90 किलो था। इस वजह से

हरियाणा के पानीपत नीरज चोपड़ा का एथलेटिक्स की दुनिया में आने का कारण काफी दिलचस्प है। उन्होंने वजन कम करने के लिए एथलेटिक्स में कदम रखा था।

बताया जाता है कि महज 12 साल की उम्र में उनका वजन 90 किलो था। उन्होंने एज ग्रुप प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने 2016 में भारतीय सेना भर्ती हो गए और नायब सूबेदार के पद पर कार्यरत है।

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