Sunday - 7 January 2024 - 8:37 AM

चीन पाकिस्तान और नेपाल : एक साथ खुले हैं तीन मोर्चे

डॉ सीपी राय

चीन, नेपाल और पाकिस्तान तीनो मोर्चो को एक साथ खोले रखना ठीक नही है। अन्धे होकर अमरीका की गोद में बैठ जाना भी ठीक नही है और इस चक्कर मे विश्वसनीय दोस्त रहे रुस को दूर कर देना भी ठीक नही हुआ और न ईरान के साथ संबंधो मे परिवर्तन। आसपास के बहुत से देश तबाह है तो मजबूत दिखने वाले देश भी अंदर से आज खोखले है ।

हम आज अर्थिक संकट और कोरोना संकट में है और चारो तरफ से घिरे है तो चीन भी चारो तरफ से घिरा है और संकट मे है। चीन ने अर्थिक विस्तार इतना ज्यादा कर लिया है की तमाम जगह अपने को अर्थिक रूप से फंसा लिया है। चीन आज लड़ाकू योद्धा नही बल्की ऐसा व्यापारी बन गया है जो अपने घर और व्यापार की रक्षा के लिए सुरक्षा भी रखता है।

नेपाल की अपनी जरूरते और मजबूरिया है और जब हम अपनी तरफ से जाने वाली पाइप लाईन काट देंगे तो वो पानी पीने कही तो जायेगा ही। लेकिन लाख मावोवादी शासन आ गया हो पर आज भी नेपाल हिन्दूओ का देश है और पशुपति नाथ से लेकर सीता मां तक का घर है और इन लोगो के होते हुये उसे इतनी आसानी से और इतनी जल्दी भारत से काटा नही जा सकता है। नेपाल की अच्छी खासी निर्भरता भारत पर आज भी है तो भारत की सेना मे तैनात इतनी बडी संख्या मे नेपाली गोरखा जहां हमारी फौज का मजबूत आधार है, वही यदि हम सचेत नही रहे और चीजो को ठीक से नही देखा समझा तो आने वाले समय मे वे आत्मघाती भी साबित हो सकते है।

पाकिस्तान की हकीकत सिर्फ इतनी है की सेना के राज के करण वो पिछड़ गया है और अर्थिक बदहाली का शिकार है और तमाम अर्थिक स्रोत पर काबिज उनकी सेना और बड़े नेता तथा ठेकेदार लोगो की रुचि पाकिस्तान को बनाने मे कम और दूनिया के दूसरे देशो मे सम्पत्तियां बनाने और अपने परिवारो का वहा सुरक्षित इन्तजाम करने मे अधिक रही है। पर किसी भी पाकिस्तानी से कही मुलाकात हो जाये तो वो भारतीय से प्रेम से मिलता है।

बांग्लादेश को पैदा करने और बनाने मे भारत ने बहुत कुछ खोया भी है और बांग्लादेश से बंगाल और उत्तर पूर्व का हजारो साल का संस्कृतिक और हर तरह का सम्बन्ध है इसलिए उसे भी अनदेखा नही किया जा सकता क्योंकि चीन ने उसकी अर्थ व्यवस्था मे बडा योगदान देना ही नही शुरू किया है बल्की नीतिया ऐसी बनायी है और टैक्स का ढांचा ऐसा बनाया है की बांग्लादेश तेजी से तरक्की कर रहा है और यहां तक की अन्य देशो का निराश और परेशान व्यापार बांग्लादेश पहुचने लगा है, यहा तक की भारत का भी और नौबत यहा तक पहुच गई की बांग्लादेश ने भारत को पाकिस्तान के साथ मध्यस्थता का प्रस्ताव देने लायक खुद को मान लिया और नागरिकता कानून की चर्चा के दौर मे उसका जवाब मुकाबले पर खड़े देश वाला था।

नागरिकता कानून की बहस और भारत के अंदर से प्रतिक्रियाओं और अन्य भी घटनाओ ने संयुक्त अरब अमीरात इत्यादि से विभिन्न आपत्तियों और आवाजो को उठाने को प्रेरित कर संबंधो, संभावनाओ और भविष्य को लेकर झोल पैदा कर दिया है।

हर अदमी अब दुनिया को ग्लोबल विलेज कहता है पर भारत मे सोशल मीडिया और ट्रोल ग्रुप और दलो के आईटी सेल ये नही देख पाते है कि दुनिया भी उन्हे देख रही है। हर देश की कुछ कमजोरियां है और अन्तर्विरोध है पर दुर्भाग्य से भारत के दूतावासो ने और सभी खुफिया संगठनो ने पिछ्ले कुछ सालो मे लगता है की सिर्फ ऐश किया है और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह नही किया है।

हां यह याद रखना होगा की केवल नौकरशाहो द्वारा बडी चीजे नही की जा सकती है उसको वही कर सकता है जो नेतृत्व कर सकता हो और मजबूत एवं दूरगामी फैसले फैसले ले सकता हो।

जब सरकार मे बैठे लोगो की निगाह और लक्ष्य इन चीजो की तरफ होता है और उसमे गम्भीरता होती है तो वैसे ही लोग विभिन्न देशो और स्थानो पर लगाये जाते है और उन्हे पता होता है की उनका उद्देश्य क्या है क्योंकि उनको स्पष्ट निर्देश रहता है की अगले कुछ सालो का लक्ष्य क्या है। सरकार भले बदल जाये पर देश का लक्ष्य नही बदलता यह किसी देश की तरक्की और मजबूती की मुख्य बुनियाद है इसिलिए बुनियाद यह भी है की सिर्फ चुनाव के 3/4 महीने कोई कुछ भी कर ले और बाकी दिनो विपक्ष भी अपनी धारदार भूमिका निभाए चाहे जब चाहे जो हो पर सभी मुख्य बड़े नेताओ, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व विदेश मंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री, पूर्व गृह मंत्री, पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व सेना अध्यक्ष और खुफिया विभागो के भी पूर्व काबिल लोगो की लगातार ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा और विचार विमर्श, सूचनाओ और भविष्य की योजनाओ पर गोपनीय रणनीतियों का निर्धारण लगातार होते रहना जरूरी है क्योंकि देश सबका है और लोकतंत्र है तो कोई भी कभी भी सत्ता मे हो सकता है और कोई भी विरोध मे। और चूंकि सभी के कुछ अनुभव भी है और कुछ भविष्य के सपने भी तो देश उन सभी विचारो और रणनीतियो का लाभ क्यो न पाये या उनसे वंचित क्यो रहे। आदर्श व्यवस्था तो यही है।

नेपाल से लड़कर नही मिल कर और उनकी तथा वहा के समाज की जिन्दगी ने घुस कर और जनता से जनता के संवाद को बढा कर बहुत कुछ ठीक भी किया जा सकता है और हासिल भी किया जा सकता है।

पाकिस्तान के अन्तर्विरोधो पर निगाह भी और दखल भी और वहा की जनता चाहे बलूच हो या सिन्धी या भारत से गए लोग जो आज भी दोयम दर्जे के नागरिक है क्या हम उनको जोड़ सकते है? क्या हम उनकी आंखों मे कुछ सपने जगा सकते है ? और भी बहुत कुछ पर उनका इस्तेमाल राजनीति के लिए करेंगे तो कुछ नही होगा सिर्फ कुछ वोट हासिल करने के अलावा। भूटान के बारे मे थोडे कम से समय की और दूसरी थोडी दूरगामी रणनीति तय करनी होगी।

श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, बांग्लादेश के मामले मे भी रस्सी या तो कही कमजोर पड़ी या ढीली पड़ गई। हा इतनी भी न खिंच जाये की टूट ही जाये।

सिर्फ दलाई लामा को शरण देकर भूल जाना भी तो बडी भूल साबित हुई। अगर पीओके पर दूनिया मे चर्चा हो सकती है, फिलिस्तीन को मान्यता मिल सकती हौ और इस्राईल को मान्यता मिल सकती है तो बौद्ध धर्म तो पूरी दूनिया के तमाम देशो मे है, तिब्बत की आज़ादी या दलाई लामा और इनके लोगो के लिए चीन जमीन खाली करे इस पर लगातार मुद्दा क्यो नही रह सकता है। हम लोग मानवता और लोकतंत्र के ठेकेदार है तो तिनामिन चौक पर बच्चो पर टैंक चढाये गए तब या होंगकोग मे जो आन्दोलन चल रहा है उस पर हमारा देश और बड़े नेता मुखर क्यो नही है ? तिब्बत बचाओ आन्दोलन क्यो मरने दिया गया।

आसपास के देशो का ढीलाढाला महासंघ को ये सपना आसपास के सभी देशो की आवाम देखने लगे इसके लिए सभी दल सयुक्त रूप से डा लोहिया के इस सपने पर काम क्यो नही कर सकते। इन चीजो के दूरगामी परिणाम हो सकते थे और हो सकते है। विभिन्न देशो के साथ मैत्री संघ और शैक्षिक संस्कृतिक आदान प्रदान के कार्यक्रम क्यो बंद हो गए और क्यो नही चलाये जा सकते है रणनीतिक रूप से।

जहा तक अभी के हालात का सवाल है उसे सरकार का नही बल्की देश का सवाल बना देना चाहिये।

1-अर्थिक मोर्चे के लिए एक सर्वदलीय और सर्वकालिक जानकार लोगो का समूह बने।

2-नेपाल के लिए एक समूह बने जिसमे उसकी जानकारी तथा वहा से अच्छे सम्बन्ध रखने वाले नेता किसी भी दल के, विदेश, बड़े धर्म गुरु, नेपाल के एक्सपर्ट विदेश सेवा के लोग, वहा काम कर चुके खुफिया विभाग के लोग इत्यादि हो।

3-बंगला देश, भूटान, श्रीलंका सहित अलग अलग देशो के लिए भी ऐसा ही हो।

4-पाकिस्तान के लिए उसको हैंडिल कर चुके और सफलता से चीजो को अंजाम दे चुके लोगो का समूह बने।

5-चीन के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व मे एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल चीन से वार्ता करे और साथ साथ अपनी क्षमता और रणनीति के अनुसार सेना अपना काम तत्काल शुरू करे और भारत लाईन ऑफ कन्ट्रोल का एक नक्शा तत्काल जारी करे, उसके अनुसार चीन को वापस जाने को मजबूर करे अन्यथा फिलहाल जहा भारत के पक्ष मे परिस्थितिया हो उन इलाको मे उससे ज्यादा किलोमीटर अंदर तक जाकर बैठ जाये।

साथ ही विएतनाम, जापान सहित जिन देशो से चीन के हित टकराते है उन सभी देशो के लिए तत्काल मंत्री या पूर्व मंत्री के नेतृत्व मे प्रतिनिधिमंडल भेज कर आक्रमक रणनीति अपनाने का संदेश दे। पर अब जो भी करना है मजबूती से करना है और स्थाई करना है।

रुस ईरान इत्यादि के साथ हुई गलती का सुधार भी जरूरी एजेंडा होना चाहिये। देश संकट मे है तो चुनाव और राजनीति संगठन के लोग देखे चाहे सत्ता हो या विपक्ष पर सत्ता के पदों पर बैठे लोग और विपक्ष मे बैठे ये जिम्मेदारियां निभा चुके लोग फिलहाल देश बनाने और बचाने के काम मे जुटे।

(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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