Sunday - 7 January 2024 - 3:01 AM

पटरी पर लौट रही जिंदगी फिर हुई बेपटरी

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी और तालाबंदी से मिला दर्द खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। तालाबंदी हुई तो जिंदगी थम गई। जब अनलॉक हुआ तो फिर जिंदगी रेंगने लगी। अभी जिंदगी ने रफ्तार पकडऩा शुरु ही किया कि देश के कुछ राज्यों में फिर से सख्त तालाबंदी का फरमान जारी हो गया। इस लॉकडाउन और अनलॉक के बीच जिंदगी घड़ी का पेंडुलम बन गई है।

बार-बार होने वाले लॉकडाउन का आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है। पहले अचानक लॉकडाउन, फिर उसके बाद उसे कम से कम चार बार बढ़ाना, फिर उसमें ढील देना और जब तेजी से संक्रमण बढऩे लगा तो फिर दोबारा पहले के मुकाबले सख्ती से लॉकडाउन करना, देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक यही कवायद दोहराई जा रही है। इस हालात में बहुत से लोग मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं।

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बार-बार होने वाले लॉकडाउन और अनलॉक की वजह से लोगों का जीवन बिखरने लगा है। नौकरी, रोजगार, कमाई और पढ़ाई तो दूर की बात है, लोगों के लिए सामान्य जीवन जीना भी दूभर होता जा रहा है। कामधाम को रफ्तार देने में जुटी कंपनियां फिर लॉकडाउन की वजह से वहीं आकर खड़ी हो गई हैं जहां एक माह पहले खड़ी थीं।

जून माह से धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही थी, लेकिन उसके बाद अचानक कोरोना संक्रमण में आए उछाल के बाद असम से लेकर पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल समेत कई राज्यों ने ज्यादा संक्रमित इलाकों में दोबारा सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया है।

इस तालाबंदी की वजह से आम लोगों की धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही जिंदगी एक बार फिर बेपटरी हो गई है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के कंटनेमेंट जोन विजयगढ़ में रहने वाले रमेश मंडल रेहड़ी का काम करते हैं। तीन महीने की बेरोजगारी के बाद अभी जून के आखिरी सप्ताह से उन्होंने दोबारा रेहड़ी लगाना शुरू किया था, लेकिन अब लॉकडाउन की वजह से उनका घर से निकलना बंद हो जाएगा। रमेश जैसे सैकड़ों लोगों के सामने ये समस्या आ गई है। रमेश का कहना है कि “बड़ी मुश्किल से तो थोड़ी-बहुत आय हो रही थी। अब वह भी बंद हो जाएगी। यही हालत रही तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।”

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पश्चिम बंगाल में तो बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों के बीच दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में 31 जुलाई तक पर्यटन से संबंधित तमाम गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई है। अभी एक सप्ताह पहले ही देशी-विदेशी सैलानियों में मशहूर इस पर्यटन केंद्र को सौ दिनों बाद दोबारा खोला गया था, लेकिन संक्रमण की आशंका से गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) ने पर्यटन पर पाबंदी लगाते हुए तमाम पर्यटकों से शीघ्र लौटने को कहा है।

जीटीए ने बिना खास जरूरत के इलाके के लोगों को मैदानी इलाकों में आवाजाही नहीं करने का निर्देश दिया है। सीएम ममता बनर्जी का कहना है, “संक्रमण बढऩे की वजह से सरकार को मजबूरी में सख्ती करनी पड़ रही है। राज्य में मास्क पहनना अनिवार्य है। बिना मास्क के बाहर निकलने वालों को लौटा दिया जाएगा। कोरोना से उपजी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने मास्क नहीं पहनने वालों पर कोई जुर्माना नहीं लगाने का फैसला किया है।”

कर्नाटक की राजधानी और देश के सबसे बड़े तकनीकी हब बंगलुरू की हालत बेहद संवेदनशील है। जून के मध्य तक वहां हालात बाकी शहरों के मुकाबले बेहतर थे। मिसाल के तौर पर उस समय मुंबई में 60 हजार संक्रमित थे और 3,167 मौतें हुई थीं। दिल्ली में यह आंकड़ा क्रमश: 44 हजार और 1,837 था और चेन्नई में क्रमश: 34 हजार और 422, लेकिन बंगलुरू में महज 827 पॉजिटिव मामले थे और 43 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन उसके बाद वहां अंतरराज्यीय सीमाएं खोलने की वजह से कोरोना का ग्राफ तेजी से चढ़ रहा है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने उच्च-स्तरीय बैठक में हालात की समीक्षा करने के बाद सख्त लॉकडाउन लागू किया है। इसी सप्ताह एक केंद्रीय टीम भी राज्य का दौरा कर चुकी है। अब तमाम प्रमुख पर्यटन केंद्रों के होटलों और गेस्ट हाउसों को फिलहाल बंद करने का निर्देश दिया गया है।

शुरुआती दौर में बेहतर कोविड-19 प्रबंधन के लिए सुर्खियां बटोरने वाला केरल भी खासकर प्रवासियों की वापसी के बाद कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहा है। राजधानी तिरुअनंतपुरम के अलावा कोच्चि में भी सख्त लॉकडाउन किया गया है। एक बार फिर तालाबंदी लोगों के लिए खासा मुसीबत पैदा करने वाली है।

बार-बार होने वाले लॉकडाउन का आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है.।नौकरी और रोजगार छिनने की वजह से पहले से ही ज्यादातर लोग मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं। अनलॉक होने के बाद फिर तालाबंदी लोगों का अवसाद बढ़ाने का काम कर रही है।

बीते महीने जब पाबंदियों में ढील मिली तो लोगों में उम्मीद की एक किरण पैदा हुई थी, लेकिन इसके साथ ही तेजी से बढ़ते संक्रमण ने मन में तमाम आशंकाएं भी पैदा कर दी थीं। अब तमाम राज्यों में नए सिरे से पाबंदियां लगाई जा रही हैं।

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इस तालाबंदी में एक बार फिर वहीं लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जो अचानक हुई तालाबंदी में हुए थे। असम में एक निजी कंपनी में काम करने वाले अभिनव मिश्रा ढाई महीने तक बेरोजगार थे। बीते महीने से काम शुरू हुआ था, लेकिन अब फिर बंद हो गया। अभिनव कहते हैं, “लॉकडाउन में पैसों की तंगी जरूर थी, लेकिन जिंदगी एक लीक पर चलने लगी थी। फिर अनलाक होने पर कुछ बदलाव आया, लेकिन अब दोबारा पाबंदियों के साथ जीना पड़ रहा है। हमारा जीवन घड़ी के पेंडुलम की तरह हो गया है। ”

समाजशास्त्री भी इस स्थिति से चिंता में हैं। समाजशास्त्री डॉ अभिषेक रंजन द्विवेदी कहते हैं कि उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच की यह अनिश्चितता बेहद खतरनाक है। इसका आम लोगों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पडऩा तय है। साथ में वह यह भी कहते हैं कि इसके सिवा सरकारों के सामने दूसरा कोई चारा भी नहीं है।

वहीं जानकारों का कहना है कि इस स्थिति के लिए काफी हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं। लॉकडाउन में ढील मिलते ही लोगों की भीड़ बाजारों से शॉपिंग मॉल तक उमडऩे लगी थी। अब उसी का खामियाजा भरना पड़ रहा है।

 

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