Monday - 22 January 2024 - 4:34 PM

ओपिनियन

हम खुद क्यों मूर्ति नहीं बन जाते

सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि 12 साल में घूरे के दिन भी बदल जाते हैं। इस कहावत का सीधा सा मतलब यह है कि किसी को जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन एक उतार-चढ़ाव भरी खूबसूरत यात्रा है जिसमें कभी भी किसी के अच्छे दिन आ सकते हैं। मैं …

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आजादी मिलने के 73 वर्ष के भीतर ही स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों की बात करना कैसे राष्ट्रद्रोह हो गया ?

डॉ सुनीलम आजादी मिलने के 73 वर्ष बाद लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, बन्धुता के मूल्यों की दुर्गति हम सब देख ही रहे हैं। देश भर में कोरोना के चलते स्वतंत्रता दिवस वैसा रंगीन और विविधतापूर्ण नहीं होगा जैसा कि अब तक होता आया है। हर 15 अगस्त पर मैं सोचता हूं …

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ब्राह्मणों को लेकर अपने-अपने दांव

केपी सिंह उत्तर प्रदेश में राजनीति अचानक खुल्लम खुल्ला जाति केन्द्रित हो गई है। पौराणिक मिथकों को आधार बनाकर होने वाले राजनैतिक खेल के बीच इस मोड़ के मद्देनजर कहीं-कहीं परशुराम भगवान श्रीराम से बड़े होने लगे हैं। सपा और बसपा में परशुराम की विशालकाय भव्य प्रतिमा लगाने को लेकर …

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लाल किले से मोदी का संबोधन और उम्मीदों का सातवां आसमान

कृष्णमोहन झा इस बार हम अपनी आजादी का पर्व एक ऐसे प्रकोप से भयावह विपदा के साए में मना रहे हैं जिसके कारण सारी दुनिया मे हाहाकार मचा हुआ है। सारी दुनिया उस दिन का बेताबी से इंतजार कर रही है जब कोरोना वायरस के प्रकोप से मुक्त होकर खुली …

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राजीव त्यागी की मौत के बाद तो टीवी डिबेट के तौर-तरीकों पर डिबेट करो !

बहुत हो गया, डिबेट के नाम पर दंगल और अखाड़ा बंद करें ! नवेद शिकोह एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया देश के न्यूजं चैनल्स की एक जिम्मेदार एसोसिएशन है। इसे कुछ तो कोशिश करनी चाहिए है। शर्म नहीं आती जब डिबेट में मार-काट और मां-बहन की गालियों की नौबत आ जाती …

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गीता सार : जो देखना चाहता है, वही देख पाता है

अंकित प्रकाश कई बार जो बातें हो चुकी हैं उन्हें भी दुहराया जाना लाभकारी साबित होता है। इसकी बहुत सी वजहें हो सकती हैं। सबसे बड़ी वजह तो ये है कि बिना दुहराये, हम भूलने लगते हैं, हमारी याददाश्त फीकी पड़ने लगती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई गणितज्ञ भी …

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फैज़ और दुष्यंत के वारिस थे राहत

अगर ख़िलाफ है होने दो.. सरकारी अवार्ड के पैमाने में जीरो थे, इसलिए ही राहत हीरो थे नवेद शिकोह आमतौर पर किसी हुनरमंद, फनकार या कलमकार के हुनर के वज़्न का पैमाना उसे मिलने वाले सरकारी अवार्ड्स होते हैं। इस पैमाने के हिसाब से तो शायर राहत इंदौरी ज़ीरो थे। …

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अमेरिकी चुनाव: क्या जलवायु परिवर्तन कराएगा सत्ता परिवर्तन?

डॉ सीमा जावेद (इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट, पर्यावरणविद & स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशन एक्सपर्ट) अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के महज़ तीन महीने बाक़ी हैं और कोविड महामारी के शोर के बीच अगर वहां कोई चुनावी मुद्दा सुनाई देता है तो वो है जलवायु परिवर्तन। बर्नी सैंडर्स से लेकर कमला हैरिस तक सभी की ज़ुबान …

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एंटी क्लॉक वाइज घूमती राजनीति की सुइयां और विश्वास का संकट

चन्‍द्र प्रकाश राय मैने कुछ साल पहले लिखा था कि आने वाले वक्त में राजनीती की सुईयां एंटी क्लॉक वाइज घूमेंगी । कांग्रेस पार्टी आज़ादी के लिए बनी वो काम किया कुर्बानी भी दिया आज़ादी की लड़ाई से बाद तक और शून्य पर खड़े देश को दुनिया के मुकाबले खड़ा …

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गहलोत हैं कांग्रेस के असली चाणक्य

सुरेन्द्र दुबे  राजस्थान में अब कांग्रेस के साथ भाजपा को भी अपने विधायकों के बिक जाने का खतरा सताने लगा है। यानी कि अभी तक जो भाजपा सचिन खेमे के विधायकों की संख्या 19 से बढ़ा कर 30 करने के जुगाड़ में लगी हुई थी उसे खुद के घर में …

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